International E-publication: Publish Projects, Dissertation, Theses, Books, Souvenir, Conference Proceeding with ISBN.  International E-Bulletin: Information/News regarding: Academics and Research

कृष्णा सोबती के लेखन में नारी पात्रों में मुक्ति संघर्ष एवम् बोल्डनेस की भावना

Author Affiliations

  • 1हिन्दी विभाग, महात्मा ज्योतिराव फूले विश्वविद्यालय, जयपुर,राजस्थान, भारत

Res. J. Language and Literature Sci., Volume 6, Issue (2), Pages 16-21, May,19 (2019)

Abstract

किसी भी समाज को सुचारू ढंग से चलाने के लिए स्त्री-पुरूष के बीच में सामंजस्य की भावना अति आवश्यक है। क्योंकि किसी एक शोषण से समाज में द्वन्द् की स्थिति पैदा हो जाती है। साहित्य समाज का आयना है जो हमें पूर्ववर्ती घटनाओं को दिखाता है। हमारे समाज में प्रचलित मान्यताएं, परंपराएं, जीवनशैली, समस्याएं, विद्रोह, विरोध, सामाजिक संगठन का पूर्ण ढांचा साहित्य द्वारा प्रतिबिंबित होता है। हिन्दी साहित्य में प्रारम्भ से ही सामाजिक विकास के रंग-ढंग साहित्य में प्रकट होने लगे थे। कहानीकारों ने भी समाज और परिवार में घटित प्रारम्भ में छोटी मोटी घटनाओं को अपने साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान दिया। लेकिन समय के साथ-साथ भारतीय समाज में महिलाओं की जीवनशैली, परंपराओं, मान्यताओं व दैनिक जीवन में तनाव, घुटन, द्वंद स्वतंत्रता की चाह, पुरूषवादी विचारधारा एवं पारंपरिक मूल्यों के प्रति विद्रोह, स्त्री अस्मिता की तलाश व उसकी सार्थकता, आत्मसजकता, बौद्धिकता, दैनिक जीवन में मानसिक, आर्थिक, शारीरिक संघर्ष जघन्य क्रूरताओं के प्रति विरोध, उनकी इच्छाएं, आकांक्षाए साहित्यिक रचनाओं में निकलकर सामने आने लगा है। कृष्णा सोबती का नाम साहित्य के क्षेत्र में आधुनिक लेखिकाओं में बेबाक, यथार्थ लेखन के लिए प्रसिद्ध है। साहित्य में नारी की अस्मिता को प्रमुखता से उठाने में उनकी मुख्य भूमिका रही है। ’स्त्री विमर्श’ का मुद्दा वर्तमान समय में महिला सशक्तिकरण के लिए एक प्रमुख विषय है। कृष्णा सोबती की रचनाओं में आत्मीयता भाव प्रवीणता के साथ-साथ कभी न मरने वाले सत्य की तलाश, निरंतर तलाश शोधार्थी से गहरी समझ की तीव्र मांग करते हैं। कृष्णा सोबती के साहित्य में पाठक को हर बार नवीन विचारधारा के साथ नए अर्थ, संदर्भ और चरित्रों के भीतर नए द्वंद की अनुभूति होती है। कृष्णा सोबती की रचनाओं में प्रत्येक शब्द हर बार नयी सोच, छटपटाहट की तहें, नयी सुबह का अहसास, हरेक एक नए अर्थ को एक अलग दिशा प्रदान करते हैं। पाठक अपने दृष्टिकोण इन तहों को सुलझाने में उलझकर उनको सही करने का प्रयास करता है। कृष्णा सोबती का कहानी संसार काफी प्रासंगिक और सार्थक है, इसमें वर्णित स्त्री चरित्र वर्तमान नारी के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

References

  1. यादव राजेन्द्र (1996), कहानी अनुभव और अभिव्यक्ति, वाणी प्रकाशन, दिल्ली,
  2. मधुरेश (1997)., हिन्दी कहानीः अस्मिता की तलाश, आधार प्रकाशन, पंचकुला,
  3. सोबती कृष्णा (1958)., डार से विछुड़ी, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली,
  4. सोबती कृष्णा (1972)., सूरजमुखी अँधेरे के, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली,
  5. सोबती कृष्णा (1993)., दिलो दानिश, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली,
  6. सोबती कृष्णा (1967)., मित्रो मरजानी, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली,
  7. सोबती कृष्णा (1968)., तिन पहाड़, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली,
  8. सोबती कृष्णा (1991)., ऐ लड़की, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली,
  9. सोबती कृष्णा (1980)., बादलों के घेरे, कहानी संकलन) राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली,
  10. सोबती कृष्णा (1968)., यारों के यार, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली,
  11. कुमार सरिता (1993)., महिला कथाकारों में प्रेम का स्वरूप-विकास, राधा कृष्ण प्रकाशन, दिल्ली,
  12. मधुरेश (1997)., हिन्दी कहानीः अस्मिता की तलाश, आधार प्रकाशन, पंचकुला,