भारतीय वाद्य संगीत के शाश्वत् भविष्य में पारम्पारीक ज्ञान और प्रगत संशोधन की एकत्रित भूमिका
Author Affiliations
- 1Department of Music, Arts College, Akola (Malkapur), Tq. Dist. Akola, Maharashtra, India
Res. J. Language and Literature Sci., Volume 5, Issue (3), Pages 7-11, July,19 (2018)
Abstract
भारतीय शास्त्रीय संगीत में वाद्यो का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। पोराणिक गाथाओं में भी हम पारम्पारिक वाद्यों को किसी न किसी रुप में पाते हैं। शिवजी डमरु बजाते थे, जो आज तक भी पारंम्पारीक लोक वाद्य बना हुआ है। इस प्रकार पारम्पारीक वाद्य की श्रृखंला में विष्णुजी - शंख, कृष्ण - बंसी, आदी हैं। पारंम्पारीक वाद्य परम्परा में सर्व प्रथम ताल वाद्य की हुई होगी, क्योंकी एक तो साधन आसानी से उपलब्ध हुएँ होंगे और उन्हें बजाना भी आसान रहा होगा। पारम्पारीक वाद्य परंम्परा में आधुनिक काल में अनेक प्रगत संशोधन हुये हैं और पारम्पारिक वाद्य का आकार छोटा हुँआ हैं और उस वाद्य में सुक्ष्म ध्वनी सुनाई दे रहे है इससें पारम्पारीक की आवाजही सुचारु हुई हैं। पारंम्पारीक वाद्य की जगह अब इलेक्ट्रानिक यंत्र वाद्य ने ली हैं। एक ही इलेक्ट्रानिक वाद्य यंत्र अनेक पारम्पारीक वाद्यों का आवाज निकालता है इस लिये आधुनिक काल में सभी वाद्य साथ ले जाने की आवश्यकता नही हैं। यह प्रगत आधुनिक संशोधन का कमाल हैं इस प्रगत संशोधक ने भारतीय वाद्य संगीत जगत नवक्रांती लायी हैं यहँ प्रगत संशोधन पारंम्पारीक वाद्यों के आधारपरही नवीनतम संशोधन कर सका हैं। इस लिये पारम्पारीक ज्ञान और प्रगत संशोधन का यथोचित संगम भारतीय शास्त्रीय वाद्य संगीत के शाश्वत भविष्यके लिये अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। प्रस्तुत संशोधन यँह भारतीय शास्त्रीय संगीत के वाद्यों के पारम्पारिक और आधुनिक संशोधित वाद्यों के व्दारा भारतीय शास्त्रीय संगीत के उत्तरोत्तर विकास पर आधारित हैं।
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